शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र भगवान शनि की स्तुति करने वाला एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तोत्र है। इसे विशेष रूप से शनिदेव की कृपा प्राप्त करने और उनकी महादशा या साढ़ेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए पढ़ा जाता है। शनिवार के दिन दोपहर में शनि मंदिर में शनि प्रतिमा को गंध, तिल का तेल, काले तिल, उड़द, काला कपड़ा व तेल से बने व्यजंन चढ़ाकर नीचे लिखे शनैश्चर स्तवराज का पाठ करें। यह स्तोत्र संस्कृत में रचा गया है और इसके पाठ से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और शनि के प्रतिकूल प्रभावों से राहत मिलती है।
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शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र – Shanaishchar Stavraj Stotra
विनियोग
अस्य श्रीशनैश्चरस्तवराजस्य सिन्धुद्वीपऋषि:, गायत्री छन्द:, आपो देवता, शनैश्चरप्रीत्यर्थं पाठे विनियोग:।
नारद उवाच
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः ।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम ।।1।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोऽवतु ।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।2।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोऽवतु ।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोऽवतु ।।3।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोऽवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः।।4।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम्।।5।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शनिः।।6।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः।।7।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः।।8।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः ।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः।।9।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुतः।।10।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा ।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः।।11।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः ।
कर्त्ता-हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायकः।।12।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः ।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः।।13।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः।।14।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः।।15।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः ।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः।।16।।
तिथात्मा तिथिगणो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः।।17।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः।।18।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः ।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः।।19।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।20।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति ।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे।।21।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः।।22।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा याऽन्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।23।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।24।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः।।25।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोऽभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।26।।
॥ इति श्री भविष्यपुराणे शनैश्चरस्तवराजः सम्पूर्णः ॥
`शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र का महत्व:
- शनि के अशुभ प्रभावों का निवारण: शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैया के दौरान होने वाले कष्टों का निवारण होता है। यह शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने में सहायक होता है।
- मानसिक शांति और आत्मविश्वास: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मविश्वास मिलता है। यह तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।
- सफलता और समृद्धि: शनि देव की कृपा से कार्यक्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। व्यक्ति की मेहनत और परिश्रम का उचित फल मिलता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों से भी राहत मिलती है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मशुद्धि का संचार करता है।
- पारिवारिक सुख-शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। शनि देव की कृपा से पारिवारिक जीवन में सामंजस्य और सहयोग की भावना बढ़ती है।
निष्कर्ष:
शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र एक प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है जिसका पाठ शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र न केवल शनि के अशुभ प्रभावों को कम करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आत्मविश्वास, आध्यात्मिक उन्नति, पारिवारिक सुख-शांति और कार्यक्षेत्र में सफलता भी लाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकता है और जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकता है।