दशरथकृत शनि स्तोत्र एक प्राचीन हिन्दू स्तोत्र है जो भगवान शनि की स्तुति करने के लिए रचा गया है। यह स्तोत्र राजा दशरथ द्वारा रचा गया था, जो रामायण के महान पात्र और भगवान राम के पिता थे। इस स्तोत्र का पाठ शनि देवता को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शनि देवता को न्याय का देवता माना जाता है और ज्योतिष में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
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दशरथकृत शनि स्तोत्र – Dashrathkrit Shani Stotra
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥
दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नमः कृष्णाय नीलेय शितिकण्ठ निभय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृत्तय च वै नमः ॥ १॥
नमो निर्माणस देहाय दीर्घाश्मश्रुजाताय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयावहते ॥ २॥
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्नेथ वै नमः ।
नमो दीर्घाय शुष्काये कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥३ ॥
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्नारिक्स्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालीने ॥४ ॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलिमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तु भास्करायभ्यादा च ॥५ ॥
अधोदेशतेः नमस्तेऽस्तु व्यक्त नमोऽस्तु ते ।
नमो मण्डगते तुभ्यं निस्त्रिंशै नमोऽस्तुते ॥६ ॥
तपसा दग्धा-देहाय नित्यं योग्रतया च ।
नमो नित्यं आराधर्तया अतृपत्य च वै नमः । ७ ॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु काश्यपत्मज्-सुनबे ।
तुष्टो ददासि वै राजयं रिष्टो हरसि तत्ख्यानात् ॥८ ॥
देवासुरमनुष्यश्च सिद्धविद्याधरोरागः । त्वया
विलोकिताः सर्वे नाशां यान्ति समूलतः ॥९ ॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वरदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ॥१० ॥
दशरथ उवाचः
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरान् देहि मामेप्सितम् ।
अद्य प्रभृतिपिंगाक्ष ! पीड़ा देय न कस्यचित् ॥
दशरथ कृत शनि स्तोत्र विधि:
- स्नान और स्वच्छता: सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
- स्थान का चयन: एक स्वच्छ और शांत स्थान चुनें जहाँ आप भगवान शनि की पूजा कर सकें। पूजा स्थल पर भगवान शनि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाना: भगवान शनि की मूर्ति या चित्र के सामने तेल का दीपक जलाएं। आप काले तिल का उपयोग दीपक में कर सकते हैं।
- धूप-अगरबत्ती: दीपक के साथ-साथ अगरबत्ती और कपूर जलाकर भगवान शनि की आरती करें।
- पुष्प अर्पित करें: भगवान शनि को नीले या काले रंग के पुष्प अर्पित करें।
- नैवेद्य: काले तिल या किसी भी काले रंग के भोजन का नैवेद्य भगवान शनि को अर्पित करें।
- स्तोत्र का पाठ: भगवान शनि की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। आप स्तोत्र को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उच्चारण पर ध्यान दें।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का महत्व
1. शनि देव की कृपा प्राप्ति:
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में शनि की अशुभ दशाओं के प्रभाव कम होते हैं। शनि देव न्याय के देवता माने जाते हैं और उनकी कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।
2. शनि के अशुभ प्रभावों का निवारण:
ज्योतिष में शनि ग्रह को महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि किसी की कुंडली में शनि की महादशा या साढ़ेसाती चल रही हो तो इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। यह स्तोत्र शनि के कारण उत्पन्न होने वाले रोग, दुर्घटनाएं और आर्थिक कष्टों को भी कम करने में सहायक होता है।
3. मानसिक शांति और आत्मविश्वास:
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। शनि देव की पूजा करने से व्यक्ति में धैर्य, साहस और सकारात्मकता का विकास होता है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना अधिक आत्मविश्वास के साथ कर सकता है।
4. आध्यात्मिक उन्नति:
शनि देव की पूजा और इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आत्मशुद्धि का संचार करता है, जिससे उसका मनोबल और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
5. पारिवारिक सुख-शांति:
इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। शनि देव की कृपा से पारिवारिक जीवन में सामंजस्य और सहयोग की भावना बढ़ती है, जिससे परिवार के सभी सदस्य खुशहाल और संतुष्ट रहते हैं।
6. कार्यक्षेत्र में सफलता:
शनि देव की कृपा से कार्यक्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की मेहनत और परिश्रम का उचित फल मिलता है, जिससे उसकी पदोन्नति और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
7. विनम्रता और न्यायप्रियता:
शनि देव विनम्रता और न्यायप्रियता के प्रतीक हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति में ये गुण विकसित होते हैं। वह दूसरों के प्रति अधिक सहानुभूति और न्यायपूर्ण व्यवहार करता है।
निष्कर्ष:
दशरथकृत शनि स्तोत्र एक प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है जिसका पाठ शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र न केवल शनि के अशुभ प्रभावों को कम करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आत्मविश्वास, आध्यात्मिक उन्नति, पारिवारिक सुख-शांति और कार्यक्षेत्र में सफलता भी लाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकता है और जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकता है।